कभी-कभार नहीं ता-हयात देते हैं दरख़्त अपने फलों की ज़कात देते हैं बुख़ारा और समरक़ंद कुछ नहीं हम तो उस एक तिल के एवज़ काएनात देते हैं कोई ज़बानी कलामी नहीं दिया तुझ को हम अपने दिल के तुम्हें काग़ज़ात देते हैं वो चाँद झील की आग़ोश में उतरता हुआ सितारे पहरा वहाँ सारी रात देते हैं निकल भी सकते थे उस एक-आध मुश्किल से वो हम को साथ कई मुश्किलात देते हैं ये ज़हर ज़हर का तिरयाक है हमारे लिए हमें तो अश्क भी आब-ए-हयात देते हैं फ़रिश्तगान-ए-क़ज़ा दाई'-ए-अजल की क़सम ग़म-ए-हयात से हम को नजात देते हैं सब एक साथ हैं हिर्स-ओ-हवस के नुक्ते पर दिखाए किस को वो चौदह निकात देते हैं हमेशा कोई जहाँ में नहीं रहा फिर भी दुआ सबात की हम बे-सबात देते हैं