ख़याल में तिरे पैकर को चूम लेते हैं हम अहल-ए-ज़र्फ़ हैं पत्थर को चूम लेते हैं बढ़ा गए थे वो इज़्ज़त हमारे घर की कभी इस एहतिराम में हम दर को चूम लेते हैं हयात-ए-नौ की झलक जो हमें दिखाता है नज़र से हम उसी मंज़र को चूम लेते हैं ग़रीब-ख़ाने में होती है रौशनी जिस से हम उस चराग़-ए-मुनव्वर को चूम लेते हैं बड़ा सुकून हमें घर में आ के मिलता है हम अपने बच्चों के जब सर को चूम लेते हैं