जिस के लिए ये बज़्म सजाई ब-सद-ख़ुलूस रस्म-ए-वफ़ा भी उस ने निभाई ब-सद-ख़ुलूस आए वो अंजुमन में तो रौनक़ सी आ गई लीजे सलाम-ए-दस्त-ए-हिनाई ब-सद-ख़ुलूस अब ये ग़म-ए-जुदाई नहीं सह सकूँगी मैं रंज-ओ-अलम से दीजे रिहाई ब-सद-ख़ुलूस ख़ुद को सिपुर्द शो'लों के मैं ने भी कर दिया उस ने जफ़ा की आग लगाई ब-सद-ख़ुलूस ये वस्ल-शब तो शिकवे शिकायत में कट गई रूदाद-ए-इश्क़ उस ने सुनाई ब-सद-ख़ुलूस हम ने भी आज अपनी 'अना' का रखा भरम उस ने भी आज दे दी रिहाई ब-सद-ख़ुलूस