जिस की जो है तलब तमाशा है ये भी कितना अजब तमाशा है आँख ईमान लाई मंज़र पर दिल ये कहता है सब तमाशा है मैं ने दुनिया के रंग देखे हैं मेरे आगे ये सब तमाशा है देखते हैं जो हम किसी की तरफ़ देखने का सबब तमाशा है वो भी दिखलाए जो कि है ही नहीं तेरी दुनिया अजब तमाशा है ला-मकाँ से ये दहर तक का सफ़र तब तमाशा था अब तमाशा है जो था जीना अदन में जी आए ज़िंदगी क्या है अब तमाशा है बाब-ए-आलम में कुन कहा पहले फिर कहा ज़ेर-ए-लब तमाशा है क्यों सर-ए-तूर देखने जाएँ तेरे जैसा वो कब तमाशा है क्यों न आख़िर हों तुझ से दाद-तलब हम को करना ही जब तमाशा है सोचिए तो तमाशा-ए-हस्ती किस क़दर बे-सबब तमाशा है मा-सिवा दीद जिस में तू हो फ़क़त बाक़ी जो कुछ है सब तमाशा है पर्दा-दारी से काम क्या लीजे 'शम्स' होना ही जब तमाशा है