नासेह को बुढ़ापे में है अरमान अभी तक कहते हैं वो बीवी को मिरी जान अभी तक खोले हुए बैठे हैं वो दूकान अभी तक फीका है मगर शैख़ का पकवान अभी तक सर हिलता है थूतन में कोई दाँत नहीं हैं बन पाया न टूटा हुआ दालान अभी तक चप्पल से मरम्मत हुए गुज़रा है ज़माना हँसता है मुझे देख के दरबान अभी तक इंसान ने आराम की हर चीज़ बना ली जो बन न सका एक भी इंसान अभी तक कल उस को तकब्बुर था झुकाऊँगा नहीं सर इंसाँ है मगर पैरो-ए-शैतान अभी तक मग़रिब के लुटेरे तो गए देश से अपने हर घर में गिरानी तो है मेहमान अभी तक मुल्ला हों कि पंडित हों वो शाइ'र हो कि नेता मश्कूक है हर एक का ईमान अभी तक बीवी ने तमांचों से जो मुँह लाल किया था 'नावक' को मियाँ याद है वो पान अभी तक