कहीं हुए हैं निगह से क़रार आँखों में करे है क्यों ये तू दार-ओ-मदार आँखों में मता-ए-सब्र-उपर बर्क़ पड़ गई ऐ दिल हुआ है जब सते वो चश्म-चार आँखों में न जान मुझ को तू मुफ़्लिस ब-ज़ाहिर ऐ जानाँ भरे हैं मोती मिरे बे-शुमार आँखों में जब उस ने पी मय-ए-गुल-रंग जाम भर भर कर मैं क्या कहूँ हुई ज़ोर ही बहार आँखों में निगाह-ए-लुत्फ़ न की उनने क्या हुआ ऐ 'अली' कि हों हैं बातें तो ऐसी हज़ार आँखों में