जिस्म की क़ैद में हूँ कश्मकश-ए-ज़ात में हूँ एक सिक्के की तरह कासा-ए-ख़ैरात में हूँ तुम से मिलने के लिए तुम से जुदा होता हूँ क्या करूँ जान-ए-वफ़ा नर्ग़ा-ए-हालात में हूँ कल का दिन क्यों न रखें तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ के लिए आज कुछ मैं भी तुम्हारी तरह जज़्बात में हूँ कार-ए-तेशा भी वही है मिरा पेशा भी वही मैं अभी दौर-ए-ग़ुलामी ही के हालात में हूँ ज़र्रे ज़र्रे मिरे उठ उठ के क़दम लेने लगे वादी-ए-क़ैस में कुछ ऐसे मक़ामात में हूँ अब मिरी सम्त कोई आँख उठाता भी नहीं जब से देखा है तुझे मैं भी हिजाबात में हूँ पर्दा-ए-शे'र से बोले है मिरा यार 'सना' मैं ही क़ुरआन में इंजील में तौरात में हों