कोई जादू जगाना चाहता हूँ तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ अगर इक बार तुम आवाज़ दे दो तो मैं भी लौट आना चाहता हूँ तुम्हारे शहर में डूबा है सूरज मुसाफ़िर हूँ ठिकाना चाहता हूँ तुम्हीं को जीतने की आरज़ू है तुम्हीं से हार जाना चाहता हूँ तुम्हारे साथ इस दुनिया से कुछ दूर नई दुनिया बसाना चाहता हूँ दुखों से कौन दुनिया में बचा है मगर तुम को बचाना चाहता हूँ निहायत तेज़ हैं दरिया की मौजें मगर उस पार जाना चाहता हूँ अभी कुछ लोग हैं उस पार मेरे बचा कर उन को लाना चाहता हूँ यहीं हाथों से छूटी थी कलाई यहीं अब डूब जाना चाहता हूँ लहू देने का मौसम जा चुका है अब अपना आब-ओ-दाना चाहता हूँ इसी शीशे से जो टूटा हुआ है मैं इक ख़ंजर बनाना चाहता हूँ 'सना' इस महफ़िल-ए-शे'र-ओ-सुख़न में ग़ज़ल मैं भी सुनाना चाहता हूँ