जिस्म-ओ-जाँ की बस्ती में सिलसिले नहीं मिलते अब किसी भी मरकज़ से दाएरे नहीं मिलते दो-क़दम बिछड़ने से क़ाफ़िले नहीं मिलते मंज़िलें तो मिलती हैं रास्ते नहीं मिलते बारहा तराशा है हम ने आप का चेहरा आप को न जाने क्यूँ आइने नहीं मिलते वक़्त की कमी कह कर जेहल को छुपाते हैं आज-कल किताबों में हाशिए नहीं मिलते आज भी ज़माने में आदमी करिश्मा हैं शो'बदे तो मिलते हैं मो'जिज़े नहीं मिलते ज़िंदगी का हर लम्हा आरज़ू का दुश्मन है हादसों की ख़्वाहिश में हादसे नहीं मिलते आज क़त्ल करना भी बन गया है फ़न 'ज़र्रीं' क़त्ल करने वालों के कुछ पते नहीं मिलते