जीते हैं तेरे प्यार की ख़ैरात से फ़क़ीर बैठे हैं लौ लगाए तिरी ज़ात से फ़क़ीर तिश्ना-लबी ने फिर यहाँ डेरे लगा लिए हैं दिल-गिरफ़्ता हिज्र के लम्हात से फ़क़ीर हैं जान-लेवा ज़ीस्त की ये तल्ख़ियाँ मगर रोते नहीं हैं तंगी-ए-हालात से फ़क़ीर सूरत बना के काँच की तोड़ा गया कभी मग़्लूब हो गए कभी जज़्बात से फ़क़ीर ज़ुल्म-ओ-सितम की इंतिहा कीजे हुज़ूर आप कुंदन बनेंगे दर्द की सौग़ात से फ़क़ीर उम्मीद के चराग़ जलाते हैं बाम पर डरते नहीं हवाओं के ख़दशात से फ़क़ीर फ़ुर्क़त में एक उम्र से जलते रहे मगर ख़ुश हो गए बस एक मुलाक़ात से फ़क़ीर जाम-ओ-सुबू-ओ-साग़र-ओ-मीना-ओ-मै-कदा रहते हैं दूर शहर-ए-ख़ुराफ़ात से फ़क़ीर वो लोग भी 'फहीम' बड़े बा-कमाल हैं लड़ते हैं सुब्ह-ओ-शाम जो सदमात से फ़क़ीर