कौन सुने ऐ पैकर-ए-नाज़ मेरी दर्द-भरी आवाज़ आज तबीअत है ना-साज़ छेड़ मिरे ज़ख़्मों का साज़ साथ न आया साया तक किस को कहें अपना हम राज़ दर्द मुसीबत रंज मलाल ख़ूब है उल्फ़त का आग़ाज़ लहर उठी थी मन में एक छेड़ गई सपनों का साज़ उन के रुख़-ए-पाकीज़ा पर चाँदनी शब ने पढ़ी नमाज़ तेरी मोहब्बत की ख़ातिर हम ने उठाए मौत के नाज़ प्यार भरे हर लम्हे ने खोल दिए सदियों के राज़ दोनों जान हैं महफ़िल की मेरे नग़्मे तेरे साज़ 'राज' गगन से ऊँची है तेरे शे'रों की परवाज़