जो बादा मोहब्बत का तिरी नोश किया है यक बार वो आलम कूँ फ़रामोश किया है ऐ साक़ी-ए-बदमस्त मय-ए-इश्क़ ने तेरी ले होश मुझे होश सूँ बेहोश किया है तुझ बर में सजन जल्वा-नुमा सुर्ख़ क़बा देख ख़ून-ए-दिल-ए-उश्शाक़ ने फिर जोश किया है जिस दिन सूँ मिरे बर में वो गुल-पैरहन आया उस दिन सूँ मुझ आग़ोश को गुल-पोश किया है सीमीं-बदन आग़ोश में दस्ता है मिरी यूँ जियों माह कूँ हाले ने हम-आग़ोश किया है पाया है मुझे सर्व-क़द-ए-यार का माइल मेरे सुख़न-ए-रास्त कूँ जो गोश किया है 'दाऊद' तअज्जुब है कि वो यार-ए-वफ़ादार यक-बारगी आशिक़ कूँ फ़रामोश किया है