रूप कुछ आन-बान में कुछ है और मज़ा इस के मान में कुछ है बे-बदल कह तुझे खड़ा सानेअ' ये भनक मेरे कान में कुछ है करना सख़्ती न टुक समझना जान जान मुझ ना-तवान मैं कुछ है ऐ मुसव्विर शिताब हो कि अभी उस का नक़्शा धियान में कुछ है है ये अबरू-कमाँ हदफ़-अंदाज़ तीर सा इस कमान में कुछ है धान-पाँ है मिज़ाज उस की तो आन में कुछ है आन में कुछ है मान का पान भी ग़नीमत जान अब तवाज़ो जहान में कुछ है वो मुनाफ़िक़ है आदमी जिस के दिल में कुछ है बयान में कुछ है खोल आँखें दिलों की देखो तो ला-मकाँ या मकान में कुछ है ग़ैर-ए-ख़ालिक़ के और भी लोगो इस ज़मीन-ओ-ज़मान में कुछ है उस सिवा है तो कुछ कहो बारे जिस के वहम-ओ-गुमाँ में कुछ है देखियो 'अज़फ़री' को टुक और ही आन-बान इस जवान में कुछ है