जो बद-अक़ीदा हो उस को ख़ुदा नहीं मिलता लगन हो दिल में तो बंदे को क्या नहीं मिलता बड़े ख़ुलूस से सब की नज़र को तकता हूँ वफ़ा-शनास कोई आश्ना नहीं मिलता जिसे भी देखिए वो रहज़नी में यकता है हज़ार ढूँडो मगर रहनुमा नहीं मिलता दयार-ए-ग़ैर में सब ही अज़ीज़ हैं लेकिन जो दे ख़ुलूस तो वो बा-वफ़ा नहीं मिलता तुम्हारे शहर में इख़्लास की कमी लेकिन सितम है कोई भी ग़म-आश्ना नहीं मिलता सुकून-ए-क़ल्ब की दौलत मिली तो है 'ज़ाहिद' कोई बताए कि उस दर से क्या नहीं मिलता