किसी को प्यार किसी को जलाल देता है ख़ुशी किसी को किसी को मलाल देता है हर एक अश्क मसर्रत में ढाल देता है वो ग़म भी दे तो मुझे बे-मिसाल देता है कहाँ कहाँ नहीं पहुँचा तिरा पयाम-ए-लतीफ़ अज़ाँ जगह जगह अब भी बिलाल देता है हुजूम-ए-ग़म से न घबरा ख़ुदा मुहाफ़िज़ है बला भी सर पे जो आए तो टाल देता है बे-ए'तिनाई का अब उस की क्या गिला 'ज़ाहिद' सवाल-ए-वस्ल पे हँस हँस के टाल देता है