जो भी शय माँगे है वो होश-रुबा माँगे है इंतिहा ये है कि बंदे से ख़ुदा माँगे है एक ही सफ़ में नज़र आते हैं क़ातिल मक़्तूल कौन है अपने किए की जो सज़ा माँगे है कल जो ख़ुद नूर था वो दिल भी उजाले के लिए आज चढ़ते हुए सूरज से ज़िया माँगे है देखिए अब तो ख़िज़ाँ सूखे हुए आ'ज़ा को ढाँकने के लिए फूलों की रिदा माँगे है एक ही मश्ग़ला रहता है शब-ओ-रोज़ उसे मेरे मर जाने की कम्बख़्त दुआ माँगे है आँसूओं का जो ख़ज़ाना है इन आँखों में 'रईस' अपने दामन में वही बाद-ए-सबा माँगे है