उमडे हुए दिलों के वो जज़्बात ले गए बादल उठे तो साथ में बरसात ले गए सूरज को डूबता हुआ मैं देखता रहा दिल का सुकून वक़्त के हालात ले गए आए थे बाँटने के लिए ज़िंदगी के ग़म दामन में अपने अश्कों की ख़ैरात ले गए तन्हाई अपना हुस्न-ए-मुक़द्दर बनी रही सहरा में ख़्वाहिशात की बारात ले गए अंधे कुएँ के ख़ोल नज़र आए हर तरफ़ मुझ को कहाँ कहाँ ये ख़यालात ले गए मिलने की वज़्अ'-दारी ज़माने में अब कहाँ मुख़्लिस जो थे वो रंग-ए-मुलाक़ात ले गए उभरे थे उन के दिल में सवालात जो 'रईस' आँखों से मेरी सब के जवाबात ले गए