जो दाग़ है इश्क़-ए-दिल-नशीं का जो दिल-नशीं हैं दिल-ए-हज़ीं का वही है तमग़ा मिरी जबीं का वही सुलैमाँ मिरे नगीं का गई न मर कर भी कीना-ख़्वाही मिला के मिट्टी में की तबाही मिरी तरह से कहीं इलाही फ़लक भी पैवंद हो ज़मीं का तड़प न पूछो दिल-ए-हज़ीं की कहूँ मैं तुम से कहाँ कहाँ की उसी से है गर्दिश आसमाँ की उसी से है ज़लज़ला ज़मीं का जहान सर पर उठा रहा हूँ जुनूँ में धूमें मचा रहा हूँ जो दश्त में ख़ाक उड़ा रहा हूँ दिमाग़ गुर्दों पे है ज़मीं का करम में हम को ग़ज़ब में हम को किया जो मुम्ताज़ सब में हम को तुम्हारी दुश्नाम-ओ-लब में हम को मज़ा मिला ज़हर-ओ-अंग्बीं का ये लाग़री अब है ख़ार-ए-दामन कि उठ नहीं सकता बार-ए-दामन जो पाँव अपना है तार-ए-दामन तो हाथ है तार आस्तीं का मियान-ए-महशर मलालतों से मैं शम्अ' हूँ दिल की हालतों से कि पाँव तक सौ ख़िजालतों से अरक़ बहा है मिरी जबीं का सुख़न को 'क़द्र' औज दे ज़बाँ से कि तुख़्म-ए-अफ़्शाँ हो ला-मकाँ से किया है 'नासिख़' ने आसमाँ से बुलंद-तर रुत्बा इस ज़मीं का