जो दिल की राह मोहब्बत में यावरी हो जाए जनाब-ए-ख़िज़्र की मालूम रहबरी हो जाए उधर जो ज़ुल्फ़ों से मौक़ूफ़ दिलबरी हो जाए इधर बला से मुसीबत से दिल बरी हो जाए मिरी ज़बान जो वक़्फ़-ए-फ़ुसूँ-गरी हो जाए तो बंद शीशा-ए-दिल में हर इक परी हो जाए मुसीबतों से मिरा दिल अगर बरी हो जाए तो उस के साथ ही मेरी भी बेहतरी हो जाए रक़म जो वस्फ़-ए-रुख़-ए-रौशन ऐ परी हो जाए कलाम अपना भी दीवान-ए-अनवरी हो जाए अगर ख़फ़ा तू रक़ीबों से ऐ परी हो जाए तो उन के होश उड़ें और अबतरी हो जाए इधर भी तिरछी नज़र से तो देख ऐ ज़ालिम इधर भी कोई अदा-ए-सितमगरी हो जाए वो बहर-ए-हुस्न अगर आब-ए-लुत्फ़ से सींचे तो किश्त-ए-आरज़ू फूले फले हरी हो जाए हमारे दिल में जब आए वो आइना-पैकर हमारी आरज़ू सद्द-ए-सिकंदरी हो जाए मैं सख़्त-जाँ हूँ न कर क़त्ल मुझ को ऐ क़ातिल कि बाढ़ तेग़ की तेरी न दर्दरी हो जाए गया मैं इस लिए ले कर पयाम-ए-वस्ल-ए-अदू कि उन की दीद का बाइ'स पयम्बरी हो जाए वो मेहर-ए-हुस्न जो आ जाए बाम पर अपने तो ज़र्रा ज़र्रा भी ख़ुर्शीद-ए-ख़ावरी हो जाए ख़ुदा के वास्ते देखो न देखो आईना कोई ज़रूर है इस में न हमसरी हो जाए कभी मैं दश्त से बाहर क़दम नहीं रक्खूँ जुनूँ के हाथों अगर पैरहन ज़री हो जाए चमन को नाज़ उरूसान-ए-बाग़ पर है बहुत ख़ुदा करे कहीं उस गुल से हमसरी हो जाए रहे हर एक से 'साबिर' जुदा मज़ाक़-ए-सुख़न सुख़न-वरों से निराली सुख़नवरी हो जाए