जो फ़क़ीरी में 'मीर' होते हैं कितने रौशन-ज़मीर होते हैं दर्द जब तक दवा न हो जाए क़ैस मजनूँ न हीर होते हैं अक़्ल से भी कभी कभी दिल के फ़ैसले ना-गुज़ीर होते हैं सिर्फ़ किरदार की तजल्ली से दिल नसीहत-पज़ीर होते हैं अपना ख़ुद एहतिसाब कर रखना लोग मुनकिर-नकीर होते हैं कर्ब कितना है जानिए साहब अश्क दिल के सफ़ीर होते हैं जब कोई आसरा नहीं होता हौसले दस्तगीर होते हैं याद है वो नहीं वफ़ा-पेशा लोग फिर भी असीर होते हैं उन के अदना ग़ुलाम भी 'बज़्मी' रश्क-ए-शाह-ओ-वज़ीर होते हैं