मेरे जज़्बात की रौ जाने कहाँ बहकी है अब तो मुश्किल है छुपाना तुझे अफ़्सानों में दिल का शो'ला तो भड़कता ही रहा अश्कों से रात भर शम्अ पिघलती रही परवानों में रंग-ए-इख़लास-ओ-वफ़ा कैफियत-ए-सोज़-ओ-साज़ और क्या चीज़ सजाऊँ तिरे अरमानों में फिर मिरी आँखों में लहराया तिरा ख़्वाब-ए-हसीं ले चली नींद मुझे तेरे शबिस्तानों में ज़िंदगी चाहे कहीं कर ले ठिकाना अपना रूह मंडलाती रहेगी तिरे काशानों में एक नैरंग-ए-जुनूँ-साज़ सदा-ए-पैहम है ये अंदाज़-ए-कशिश हुस्न के दीवानों में आज बहकी हुई दुनिया है निगाहों में मिरी जाने क्या बात है साक़ी तिरे पैमानों में था कहाँ होश तिरे तिश्ना-लबों में बाक़ी दिल का पैमाना लिए रह गए मय-ख़ानों में चाँद का फीका तबस्सुम गुल-ए-पज़मुर्दा ही रौनक़ें हैं यही बाक़ी मिरे वीरानों में