जो गुज़रे जान से तो पाया-ए-तकमील तक पहुँचे नहीं मुमकिन कि कोई ज़ीस्त की तफ़्सील तक पहुँचे रहे अबजद के चक्कर ही में जो थे फ़िक्र से आरी हुए फ़ाज़िल वही जो ज़ौक़ की तकमील तक पहुँचे रहे बरतर जहाँ में दीन के जब तक रहे शैदा हुए जब दीन से ग़ाफ़िल तो हम तज़लील तक पहुँचे पहुँचता है दलाएल से तो इंसाँ बद नतीजे पर ज़रा सी बात थी क्यों उस की तुम तावील तक पहुँचे तू अपनी ज़िंदगी में ख़ुद को पहुँचा ऐसी ख़ूबी तक ज़माना हो तिरा जोया तिरी तमसील तक पहुँचे रसाई जिन की थी सरकार-ए-शर्क़-ओ-ग़र्ब के दर तक वो शम्अ-ए-दीन को ले कर हज़ारों मील तक पहुँचे बहुत से नौजवाँ घूम आए लंदन और पैरिस तक कोई मर्द-ए-जरी औसाफ़-ए-इस्माईल तक पहुँचे ज़मीन-ए-शेर की आराइशों ही तक न रख मतलब तख़य्युल है वही जो हल्क़ा-ए-जिबरील तक पहुँचे क़वाफ़ी चंद दाम-ए-फ़िक्र तक पहुँचे थे ऐ 'साइर' ये अल्फ़ाज़-ए-हसीं अशआ'र की तश्कील तक पहुँचे