कोई भी दिल में नहीं अब आरज़ू है ख़याल-ए-यार मेरे रू-ब-रू वो बने उनवाँ किताब-ए-ज़ीस्त का और क्या हो उस की ख़ातिर जुस्तुजू मेरी आँखों में ये किस का अक्स है कर रहा है कौन मुझ से गुफ़्तुगू देख कर जिस को बहारें झुक गईं उस की ख़ुशबू है चमन में चार सू बात कोई तो बने ख़ंजर उठा गर तुझे मक़्सूद है मेरा लहू बारगाह-ए-इश्क़ से आई निदा है दर-ए-जानाँ पे मरना आबरू मुंतख़ब जिस को मिरे दिल ने किया उस से बढ़ कर कौन होगा ख़ूब-रू पी रहा हूँ मैं निगाह-ए-यार से हेच हैं मेरे लिए जाम-ओ-सुबू ख़ूगर-ए-दर्द-ए-मोहब्बत मैं ही था किस लिए करता मैं ज़ख़्म-ए-दिल रफ़ू इज़्तिराब-ए-हिज्र का आलम न पूछ कर रहा हूँ अपने अश्कों से वुज़ू मेरे दिल में काश 'साइर' झाँक कर देख लेते अपने अहबाब-ओ-अदू