जो होना था हुआ शिकवा गिला क्या मोहब्बत में वफ़ा कैसी जफ़ा क्या दिल-ए-मायूस ये आह-ओ-बुका क्या शिकस्ता साज़ की आख़िर सदा क्या मिरे आग़ोश में खेले हैं तूफ़ाँ मैं मौज-ए-बहर-ए-ग़म में डूबता क्या जमाल-ए-बर्क़ है जिन की तजल्ली नज़र उन से मिलाऊँ मैं भला क्या न हुशयारों न दीवानों में हैं आप वो फ़रमाते हैं मुझ से आप का क्या तिरा वा'दा कहाँ तक साथ देगा क़यामत से मिलेगा सिलसिला क्या चुरा लीं मैं ने दानिस्ता निगाहें भरी महफ़िल में उन को देखता क्या निगाह-ए-नाज़ के मारे हुए हैं हमारे सामने आब-ए-बक़ा क्या दिल-ए-बेताब और तुम से शिकायत ये दीवाना है इस की बात का क्या तुम्हीं ने फेर लीं जब मुझ से नज़रें ज़माना दिल को देगा आसरा क्या वो ख़ुद चाहें तुझे ये चाहता है 'वकील'-ए-बे-अदब तेरी सज़ा क्या