रिवाज-ए-जाम-ओ-सुबू से बचा बचा के पिला पिलाने वाले नज़र से नज़र मिला के पिला ये ठंडी ठंडी हवाएँ ये काली काली घटा हमारी तौबा के टुकड़े उड़ा उड़ा के पिला मय-ए-तहूर का तालिब है शैख़ ऐ साक़ी पिला हमें मगर उस को दिखा दिखा के पिला शबाब-ओ-हुस्न की तौहीन है ग़म-ए-उक़्बा मैं मुस्कुरा के पियूँ और तू मुस्कुरा के पिला गुनाहगार सही तालिब-ए-करम तो है 'सहर' के हक़ में तू दस्त-ए-दुआ' उठा के पिला