जो ख़ाली था हमारे दिल का कोना भर गया है नज़र का तीर या'नी घाव गहरा कर गया है किसी लब के तबस्सुम की अदा होनी है क़ीमत इक आँसू नोक-ए-मिज़्गाँ पर जो आकर मर गया है तिरी जानिब से पत्थर अब भी मुझ तक आ रहे हैं इनायत रोक दे कासा लबालब भर गया है तमन्नाओ तुम्हें भी लौट जाना चाहिए था जुनूँ भी छोड़ कर सहरा-नवर्दी घर गया है मुसाफ़िर इश्क़ का हसरत के दरिया में गया क्यों उसे हरगिज़ वहाँ जाना नहीं था पर गया है वही दिल पर हुकूमत कर रहा है मेरे 'कौसर' जो इस का मुस्तहिक़ था ताज उस के सर गया है