जो ख़ुश हुआ है चराग़ों का सर क़लम कर के चला न जाए मोहब्बत को कल-अदम कर के उसे तलाश नए मंज़रों की रहती है उजाले लाया है तारीकियों में ज़म कर के हवा की तरह तलव्वुन शिआ'र था तो सही मगर वो शख़्स गया फ़ैसले रक़म कर के हमारे ख़्वाब अँधेरों के यर्ग़माली हैं सिपाह-ए-शब को सर-ए-शाम बे-अलम कर के अना के पेड़ पे शायद समर मलाल का हो ज़रा सा देख तो लूँ राब्ते बहम कर के हवा में तैरते रहते हैं और रुकते नहीं ये किस ने छोड़ दिया जुगनूओं को रम कर के 'कफ़ील' ले के कोई मुज़्दा-ए-सहाब आया जब आग जा चुकी सब आशियाँ भसम कर के