जो कू-ए-दोस्त को जाऊँ तो पासबाँ के लिए नहीं है ख़्वाब से बेहतर कुछ अरमुग़ाँ के लिए तमाम इल्लत-ए-दरमाँदगी है क़िल्लत-ए-शौक़ तपिश हुई पर-ए-पर्वाज़-ए-मुर्ग़-ए-जाँ के लिए शरीक-ए-बुलबुल-ओ-क़ुमरी हैं वो ज़बूँ-फ़ितरत जो बे-क़रार रहे सैर-ए-गुलिस्ताँ के लिए उमीद है कि निबाहेंगे इम्तिहाँ ले कर जो इस क़दर मुतक़ाज़ी हैं इम्तिहाँ के लिए न ख़ाकियों से तअ'ल्लुक़ न क़ुदसियों से रब्त न हम ज़मीं के लिए हैं न आसमाँ के लिए पयाम-ए-दोस्त हुआ क़ासिदों को वज्ह-ए-शरफ़ नसीम-ए-मिस्र से इज़्ज़त है कारवाँ के लिए क़फ़स ज़माना ओ जाँ मुर्ग़ ओ आशियाँ मलकूत क़फ़स में मुर्ग़ है बेताब आशियाँ के लिए फ़साने यूँ मोहब्बत के सच हैं पर कुछ कुछ बढ़ा भी देते हैं हम ज़ेब-ए-दास्ताँ के लिए हमारी नज़्म में है 'शेफ़्ता' वो कैफ़िय्यत कि कुछ रही न हक़ीक़त मय-ए-मुग़ाँ के लिए