जो मकाँ था ला-मकाँ होने लगा है अब ज़मीं पर आसमाँ होने लगा है दास्ताँ दीवार-ओ-दर कहने लगे हैं आदमी तो बे-ज़बाँ होने लगा है ज़िंदगी के साथ चल कर देखिए तो हादिसा क्या क्या यहाँ होने लगा है बे-सबब कुछ लोग मुझ से मिल रहे हैं वक़्त शायद मेहरबाँ होने लगा है मैं निकल आया हूँ जिस की रहगुज़र से मेरे अंदर वो निहाँ होने लगा है धुंद की दीवार है मंज़र-ब-मंज़र रास्ता फिर बे-निशाँ होने लगा है आँधियों की ज़द में आ पहुँचा है इंसाँ गर्द में गुम कारवाँ होने लगा है पढ़ रहे हैं लोग चेहरे की तमाज़त हाल चेहरे से बयाँ होने लगा है याद उस की चल रही है साथ 'ख़ालिद' वो मताअ'-ए-जिस्म-ओ-जाँ होने लगा है