जो मिरे हम-अस्र हम-सोहबत थे सो सब मर गए अपनी अपनी उम्र का पैमाना हर यक भर गए पूछते क्या हो गुनाहों के गिरफ़्तारों का हाल ख़ुश्क ज़ाहिद थे सो इस जागह से दामन तर गए हाथ से सय्याद के साबित न छूटा एक सैद बाल-ओ-पर रखते थे सो बे-बाल और बे-पर गए ये क़िमार-ए-इश्क़ है ऐ बुल-हवस बाज़ी न जान सर गए बहुतों के और बहुतों के इस में घर गए हम ने हस्ती और अदम की आ के की है ख़ूब सैर रस्म ओ आईं देख इन लोगों का अज़ बस डर गए एक जो आया उसे ले गोद में दी घर में जा दूसरे को काढ़ कर घर से ज़मीं में धर गए तुम कहो अपनी मियाँ 'हातिम' कि हो किस फ़िक्र की और जो आए जने जैसी बनी सो कर गए