जो मिस्ल-ए-तीर चला था कमान सा ख़म है निगाह-ए-दोस्त में तासीर-ए-इस्म-ए-आज़म है ख़ुशा कि वो हैं मिरे रू-ब-रू ब-नफ़्स-ए-नफ़ीस ज़हे कि आज मिरी आरज़ू मुजस्सम है मुहीत-ए-हुस्न-ए-कराँ-ता-कराँ नहीं न सही बिसात-ए-शीशा-ए-दिल जिस क़दर है ताहम है अना-पसंद अना के नशे में भूल गए ये शहद वो है कि जिस के ख़मीर में सम है हवा से करता है बातें तिरी महक पा कर तिरे ग़ज़ाल-ए-जुनूँ में बला का दम-ख़म है ये रंग-ओ-नूर ये ख़ुश्बू ये कैफ़-सामानी हरीम-ए-नाज़ है या आलिमों का आलम है न जा तबस्सुम-ए-लब-हा-ए-ख़ुश्क पर ऐ दोस्त हँसी नहीं ये तरक़्क़ी पसंद मातम है तो क्या चराग़-ए-तमन्ना का मैं मुहाफ़िज़ हूँ जब उन को फ़िक्र नहीं है यहीं किसे ग़म है मिरा मिज़ाज है यारों पे वार दूँ ख़ुद को मिरा वजूद भी अंगुश्तरी का नीलम है धुआँ धुआँ नज़र आती है बज़्म-ए-फ़न 'ग़ौसी' यहाँ चराग़ ज़ियादा हैं रौशनी कम है