जो नहीं जानता हूँ ख़ल्क़-ए-ख़ुदा पूछती है मुझ से हर मोड़ पे अब मेरा पता पूछती है बे-अमाँ देख के टूटे हुए पत्तों की तरह ले चलूँ तुझ को किधर मुझ से हवा पूछती है मुझ में वो कौन सी शय है जो हर इक पल मुझ से होना कब क़ैद-ए-बदन से है रिहा पूछती है देख कर जिस को सभी लोग हैं घबराए हुए ख़ैरियत मेरी वही राह-ए-फ़ना पूछती है मुंतज़िर कब से मिरी तिश्ना-लबी थी जिस की वो घटा मुझ से समुंदर का पता पूछती है ज़र्रे ज़र्रे की ज़बाँ पर है कहानी मेरी मुझ से ये दुनिया मिरे बारे में क्या पूछती है दश्त-ए-ज़ुल्मत है मुझे शहर-ए-निगाराँ 'नौशाद' हाल-ए-दिल मुझ से सितारों की ज़िया पूछती है