जो नेकियों से बदी का जवाब देता है ख़ुदा भी उस को सिला बे-हिसाब देता है उसी के हुक्म से घर-बार उजड़ भी जाते हैं वही फिर उन को बसाने के ख़्वाब देता है बशर पे क़र्ज़ जो होते हैं कार-हा-ए-जहाँ तमाम-उम्र वो उन का हिसाब देता है ग़रज़ ये है न हो फ़िक्र-ओ-अमल में कोताही ख़ुदा दिलों को अगर इज़्तिराब देता है क़ुसूर इस में भी है वालदैन का शायद जो बच्चा उन को पलट कर जवाब देता है कटी है उम्र अज़ाबों में देखना है अब मज़ीद क्या दिल-ए-ख़ाना-ख़राब देता है वो आज़माता है काँटों से सब्र इंसाँ का फिर उस के बा'द महकते गुलाब देता है सवाल दीद-ओ-मुलाक़ात कर चुके हैं 'चाँद' अब आगे देखिए वो क्या जवाब देता है