जो फूँक दे दिल-ए-आलम वो राह पैदा कर जो बर्क़ बन के गिरे वो निगाह पैदा कर ख़ुलूस-ओ-ख़ुल्क़-ओ-मोहब्बत की चाह पैदा कर मगर न इस में कभी इश्तिबाह पैदा कर सिखाए सब्र जो वो दरस-गाह पैदा कर सुकून-ओ-अम्न की इक शाह-राह पैदा कर ग़म-ए-जहाँ से है बचना तुझे अगर ऐ दिल तू ज़ेर-ए-दामन-ए-उल्फ़त पनाह पैदा कर जो बज़्म में हैं फ़िदाई नहीं हैं सब तेरी परख सके जो वफ़ा वो निगाह पैदा कर जो बाग़बाँ ने नशेमन जलाया ऐ बुलबुल समेट कर जले तिनके गवाह पैदा कर अगर बहार-ए-चमन की है आरज़ू ऐ दिल हवा-ए-दश्त से भी रस्म-ओ-राह पैदा कर सनम का दिल में ज़बाँ पर ख़ुदा का नाम रहे गुनाह के लिए उज़्र-ए-गुनाह पैदा कर हँसी उड़ा न मोहब्बत की हाए वाए न कर जो दिल की हूक बने ऐसी आह पैदा कर 'फ़ज़ा' यही दिल-ए-बेताब का तक़ाज़ा है हरीम-ए-नाज़ ही में जाए-गाह पैदा कर