जो पूछते हैं कि ये इश्क़-ओ-आशिक़ी क्या है वो जानते नहीं मक़्सूद-ए-ज़िंदगी क्या है ज़मीर-ए-पाक ख़याल-ए-बुलंद ज़ौक़-ए-लतीफ़ बस और इस के सिवा जौहर-ए-ख़ुदी क्या है वफ़ा की आड़ में क्या क्या हुई जफ़ा हम पर जो दोस्ती यही ठहरी तो दुश्मनी क्या है बजा है फ़र्त-ए-जुनूँ ने हमें किया रुस्वा जमाल-ए-यार में आख़िर ये दिलकशी क्या है वुफ़ूर-ए-शौक़ की मायूसियाँ अरे तौबा दिल-ए-तबाह में अब आरज़ू रही क्या है अगर न जुर्म-ए-मोहब्बत की ये सज़ा होती तो बात बात पे हम से ये बे-रुख़ी क्या है न समझो तुम मिरी अर्ज़-ए-नियाज़ को शिकवा मैं जानता हूँ तक़ाज़ा-ए-बंदगी क्या है अता किया था जो ज़ौक़-ए-नुमूद उस दिल को तो हर क़दम पे ये रंग-ए-शिकस्तगी क्या है गुरेज़ क्या मैं करूँ नासेहो की सोहबत से जहाँ न कुछ हो ये सोहबत वहाँ बुरी क्या है वफ़ा से और न तर्क-ए-वफ़ा से आप हैं ख़ुश मुझे बताइए फिर आप की ख़ुशी क्या है फ़रेब-ए-हस्ती-ए-मौहूम खा रहा हूँ हनूज़ मुझे ख़बर है हक़ीक़त यहाँ मिरी क्या है जो गामज़न हैं सर-ए-जादा-ए-तलब 'नजमी' वो जानते नहीं दुनिया में बेबसी क्या है