जो शाहों को नहीं हासिल वो जौहर पास रखता है सुकून-ए-क़ल्ब हर शहज़ादा-ए-इफ़्लास रखता है वो अपनी ज़ात को महव-ए-क़ुनूत-ओ-यास रखता है समुंदर ख़ुद को कहता है लबों पर प्यास रखता है हैं तख़्त-ओ-ताज की ख़ातिर दयार-ए-कुफ़्र के सज्दे मगर मोमिन फ़क़त अल्लाह पर विश्वास रखता है मुसलसल चीख़ता रहता है हम ये जंग जीतेंगे जो हर लम्हा शिकस्त-ए-फ़ाश का एहसास रखता है शुरूर-ए-नफ़्स और ख़न्नास फिर भी ग़ालिब आते हैं अगरचे वो लबों पर सूरा-ए-वन्नास रखता है तवज्जोह को वही मरकज़ वो तस्कीन-ए-निगाह-ओ-दिल वो सादा शख़्स जो किरदार की बू-बास रखता है जियो तो इस तरह जैसे वतन की तुम ज़रूरत हो वगर्ना बे-हुनर से कौन 'हनफ़ी' आस रखता है