जो थे हाथ मेहंदी लगाने के क़ाबिल हुए आज ख़ंजर उठाने के क़ाबिल अनादिल भी कलियाँ भी गुल भी सबा भी ये सोहबत है हँसने-हँसाने के क़ाबिल हिना बन के मैं चूम लूँ दस्त-ए-नाज़ुक तिरे हाथ हैं रंग लाने के क़ाबिल जवानी का अब रंग कुछ आ चला है वो अब हो चले हैं सताने के क़ाबिल मुझे देख कर दुख़्त-ए-रज़ तन रही है ये खिंच कर हुई है उड़ाने के क़ाबिल क़यामत में देखेंगे क्यूँकर उन्हें हम नहीं शर्म से आँख उठाने के क़ाबिल बनाएँ न अब उस को अब शम-ए-महफ़िल जला दिल नहीं है जलाने के क़ाबिल चमन में उड़ा उन को ऐ बाद-ए-सरसर मिरे टूटे पर हैं उड़ाने के क़ाबिल बने शो'ले बिजली के क़िस्मत से मेरी जो तिनके थे कुछ आशियाने के क़ाबिल बुढ़ापे में साबित हुए दुज़्द-ए-मय हम न आने के क़ाबिल न जाने के क़ाबिल ये कहती है हज़रत की रीश-ए-हिनाई 'रियाज़' अब भी हैं रंग लाने के क़ाबिल