जो वहम है डर है पस-ए-पर्दा नहीं निकला बस्ती से अभी तक वो बगूला नहीं निकला हिंदा की तरह जिस्म उधेड़ा था हवा ने लेकिन मिरे सीने से कलेजा नहीं निकला कुछ हम तिरे मेआ'र पे पूरे नहीं उतरे कुछ तू भी कि मशहूर था जैसा नहीं निकला गो शहर में पैमाइश-ए-क़द आम है लेकिन इक शख़्स भी हम-क़ामत-ए-साया नहीं निकला पोशाक-ए-रफ़ू-कार के क्या कहने कि 'अख़्तर' इक तार गरेबान में अपना नहीं निकला