जोबन से कभी हुस्न को ढलने नहीं देते हम ज़ोर कोई इश्क़ पे चलने नहीं देते मौज़ूअ'-ए-ग़म-ए-इश्क़ बदलने नहीं देते सच है कि हमें दिल को सँभलने नहीं देते अब चाँद सितारे भी हैं गुम जंग-ओ-जदल में सूरज को तो पहले ही निकलने नहीं देते अब फ़िस्क़-ए-ज़मीं का है असर अर्श-ए-बरीं तक टलती हो क़यामत भी तो टलने नहीं देते 'सफ़वत' को समावात से है सुब्ह की उम्मीद दीवाने तो इक शम्अ' भी जलने नहीं देते