कभी खोना कभी खो कर के पाना साथ चलता है ये दुनिया है यहाँ पर आना जाना साथ चलता है अज़ल से आज तक ये आशिक़ाना साथ चलता है मोहब्बत जिस तरफ़ जाए ज़माना साथ चलता है मगर ये क़त्ल-ओ-ग़ारत फ़िल्म नाटक क्या डरामा है हक़ीक़त तल्ख़ है इतनी फ़साना साथ चलता है वही है शरह-ए-लिटरेसी वही वोटर हैं ना-ख़्वांदा हुकूमत पर वही क़ाबिज़ घराना साथ चलता है मोहब्बत फ़ल्सफ़ा है अमजद-ए-इस्लाम अपना भी अमल पैहम मगर ये काफ़िराना साथ चलता है हुई जाती है 'सफ़वत' ख़त्म फ़िक्र-ए-किश्त-ए-वीराँ भी चले जाएँ जिधर हम आब-ओ-दाना साथ चलता है