जोश-ओ-ख़रोश पर है बहार-ए-चमन हनूज़ पीते हैं नौ-जवान शराब-ए-कुहन हनूज़ पाता नहीं मैं यार को मेल-ए-सुख़न हनूज़ मादूम है कमर की तरह से दहन हनूज़ बरसों से रो रहा हूँ शब-ओ-रोज़ मुत्तसिल हँसते हैं मुद्दतों से मिरे ज़ख़्म-ए-तन हनूज़ रुख़्सार-ए-यार पर नहीं आग़ाज़-ए-ख़त अभी देखा नहीं इन आँखों ने सूरज गहन हनूज़ अंजाम-ए-कार का नहीं आता ख़याल कुछ ग़ुर्बत में भूले बैठे हैं यार-ए-वतन हनूज़ आलम उन अबरुओं की कजी का जो है सो है बल खा रही है ज़ुल्फ़-ए-शिकन-दर-शिकन हनूज़ ख़िलअत की क्या उमीद रखें आसमाँ से हम उस ने तो दाब रक्खा है अपना कफ़न हनूज़ आलम हिजाब-ए-यार का ता-हाल है वही ख़ल्वत-नशीं है रौशनी-ए-अंजुमन हनूज़ अपने सफा-ए-सीना का हैरान कार है देखा नहीं है आइने ने वो बदन हनूज़ हर-चंद बाग़-ए-दहर में मुद्दत से हूँ मुक़ीम 'आतिश' नज़र पड़ा न वो सेब-ए-ज़क़न हनूज़