काम हिम्मत से जवाँ मर्द अगर लेता है साँप को मार के गंजीना-ए-ज़र लेता है ना-गवारा को जो करता है गवारा इंसाँ ज़हर पी कर मज़ा-ए-शीर-ओ-शकर लेता है हाले में माह का होता है चकोरों को यक़ीं कभी अंगड़ाई जो वो रश्क-ए-क़मर लेता है वो ज़ुबू-बख़्स शजर हूँ मैं कि दहक़ाँ मेरा पीछे बोता है मुझे पहले तबर लेता है मंज़िल-ए-फ़क़्र-ओ-फ़ना जा-ए-अदब है ग़ाफ़िल बादशह तख़्त से याँ अपने उतर लेता है गंज-ए-पिन्हाँ हैं तसर्रुफ़ में बनी-आदम के कान से लाल ये दरिया से गुहर लेता है नज़र आ जाता है ऐ गुल जिसे रुख़्सार तिरा फूलों से दामन-ए-नज़्ज़ारा वो भर लेता है अक़्ल कर देती है इंसाँ की जहालत ज़ाइल मौत से जान छुपाने को सिपर लेता है याद रखता है अदम में कोई साग़र-कश उसे हिचकियाँ शीशा-ए-मय शाम-ओ-सहर लेता है ग़ैरत-ए-नाला-ओ-फ़रियाद न खो ऐ 'आतिश' आश्ना कोई नहीं कौन ख़बर लेता है