जुनूँ जब मुस्कुराता है ख़िरद की गुल-फ़िशानी पर वो आलम इक क़यामत है इरादों की जवानी पर हँसी आती रही फूलों को मेरी बे-ज़बानी पर रहा मग़्मूम मैं जितना मआल-ए-शादमानी पर अगर वाइज़ तुझे अपना तक़द्दुस सौंप सकता है मैं कर दूँ मय-कदे क़ुर्बान तेरी नौजवानी पर रिदा-ए-कैफ़-ओ-मस्ती ओढ़ लें साक़ी ये मयख़ाने वो बिखरा दें जो ज़ुल्फ़ों को शराब-ए-अर्ग़वानी पर हँसी उड़ती है ग़ुंचों के बड़े दिलकश तबस्सुम की वहाँ तन्क़ीद हो जाती है कलियों की जवानी पर ये किस ने रू-ए-ज़ेबा से नक़ाब उल्टा गुलिस्ताँ में बहारों की तबीअ'त आ गई 'अंजुम' रवानी पर