ख़ुशी दे के वो मुझ को ग़म दे रहे हैं मुसलसल फ़रेब-ए-करम दे रहे हैं बड़ा ख़ूबसूरत है पैमान-ए-उल्फ़त मुझी को वो मेरी क़सम दे रहे हैं ये तर्ज़-ए-मोहब्बत मुबारक हो तुम को तुम्हें लोग दाद-ए-सितम दे रहे हैं ये दुनिया जिन्हें राहज़न कह रही है मिरा साथ तो कम से कम दे रहे हैं तकल्लुफ़ सही दुनिया वालों से तुम को मगर अब तो आवाज़ हम दे रहे हैं मैं उन की जवानी पे माइल हूँ 'अंजुम' मुझे लोग क्यों जाम-ए-जम दे रहे हैं