जुनून-ए-इश्क़ ये अच्छा सिला दिया तू ने ज़माने भर की नज़र से गिरा दिया तू ने सबा भी ढूँढती फिरती है ख़ाक को मेरी मिटा मिटा के यहाँ तक मिटा दिया तू ने मिरे लिए ही कमी है तिरे करम में करीम कि बे-तलब को भी हद से सिवा दिया तू ने वगर्ना मैं क्या जहाँ में मिरी हक़ीक़त क्या तिरा करम है कि जो कुछ अता किया तू ने गवाही देती हैं बर्बादियाँ 'असर' तेरी किसी के इश्क़ में ख़ुद को मिटा दिया तू ने