ख़िर्मन-ए-दिल कि जाँ से उठता है ये धुआँ सा कहाँ से उठता है आप शो'ला हैं आप क्या जानें कब धुआँ क़ल्ब-ओ-जाँ से उठता है हम वहीं बूद-ओ-बाश रखते हैं फ़ित्ना-ओ-शर जहाँ से उठता है ख़ैर-ओ-ख़ूबी से आप का बंदा लीजिए अब जहाँ से उठता है परचम-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न 'ज़िया' साहिब नुक्ता-चीं नुक्ता-दाँ से उठता है