जुरअत है तो तूफ़ाँ से गुज़र क्यों नहीं जाते ज़िंदा नहीं एहसास तो मर क्यों नहीं जाते गेसू तिरे लहरा के बिखर क्यों नहीं जाते दिल में तिरे अंदाज़ उतर क्यों नहीं जाते मैं गोशा-ए-तन्हाई में सुस्ता लूँ ज़रा सा कुछ देर को आलाम ठहर क्यों नहीं जाते सीने में मचलते हुए जज़्बात के धारे अशआ'र के क़ालिब में उतर क्यों नहीं जाते किस सोच में गुम बैठे हो राहों में 'तबस्सुम' वीराँ सही अपना तो है घर क्यों नहीं जाते