कोई न समझे चाह का मतलब कोई न जाने प्रीत कौन किसी के दर्द को जाने कौन किसी का मीत कोई नहीं है दिल का महरम कोई नहीं ग़म-ख़्वार आज सुनाएँ किस को ऐ दिल दर्द भरे ये गीत आँख से आँसू बहें हमारे दिल में आग जले इक अंजान को कर बैठे हैं जिस दिन से हम मीत मैं हूँ भूला भटका राही मंज़िल मेरी दूर जाने इस तूफ़ानी खेल में हार मिले या जीत आग मोहब्बत की जिस दिल में जल उट्ठे इक बार सारी उम्र 'तबस्सुम' उस की रो रो जाए बीत