काम आता ग़म-ए-निहाँ दिल का काश करते वो इम्तिहाँ दिल का शरह-ए-अफ़्साना-ए-मोहब्बत है चश्म-ए-तर है मिरी बयाँ दिल का कह गई सब ख़मोशी-ए-बेजा राज़ रहता है कब निहाँ दिल का इस में उन का भी कुछ इशारा है दुश्मन-ए-जाँ है आसमाँ दिल का मुझ को देते हैं क्यों नवेद-ए-नशात आलम-ए-ग़म न हो अयाँ दिल का तू हुआ जब से जागुज़ीँ दिल में ज़र्रा-ज़र्रा है आसमाँ दिल का क्यों सरापा अलम न बन जाती दास्ताँ दिल की थी बयाँ दिल का क्या दिखाएँ किसे दिखाएँ हम ज़ख़्म और ज़ख़्म-ए-बे-निशाँ दिल का बे-ख़ुदी दिल की खींच लाई कहाँ कोई महरम नहीं जहाँ दिल का सरज़मीं इश्क़ की वहीं समझो क़दम आ के रुके जहाँ दिल का जिस ने मारा उसी पे मरता है दुश्मन-ए-जाँ है जान-ए-जाँ दिल का कोई इस तरह भी मिटाता है कुछ तो छोड़ो कहीं निशाँ दिल का गुम हुआ अपनी वुसअ'तों में ख़ुद लुट गया ख़ुद ही कारवाँ दिल का जान जाती है गर तो जाए 'जुनूँ' राज़ आए न ता-ज़बाँ दिल का