कब हो सका है दिल का मुदावा तिरे बग़ैर होगा तिरा मरीज़ न अच्छा तिरे बग़ैर सब्र-ओ-क़रार-ए-इश्क़ 'इबारत तुझी से है बातिल है ज़ब्त-ए-दर्द का दा'वा तिरे बग़ैर इस तरह अब जहाँ में हूँ गोया नहीं हूँ मैं कैसी बदल गई मिरी दुनिया तिरे बग़ैर बालीं पर आ कि मौत सुकूँ से नसीब हो जीना तो अब नहीं है गवारा तिरे बग़ैर हर मौज-ए-मय है इक रग-ए-ख़ूँ-बार हिज्र में क्या होंगे आह साग़र-ओ-मीना तिरे बग़ैर तेरी तजल्लियों से हैं सब की तजल्लियाँ जल्वा नहीं है कोई भी जल्वा तिरे बग़ैर ये बर्क़ बे-क़रार है दामान-ए-अब्र में या मुज़्तरिब है दिल पस-ए-पर्दा तिरे बग़ैर तू उठ के क्या चला कि चली जान जिस्म से दुश्वार हो गया मुझे जैसा तिरे बग़ैर क्या ज़िक्र-ए-मेहर-ओ-माह कि ऐ मेहर-ओ-माह-ए-हुस्न चमका न आज तक कोई ज़र्रा तिरे बग़ैर बेगाना-ए-हयात है हर लम्हा-ए-फ़िराक़ किस तरह जी सके कोई तन्हा तिरे बग़ैर तू देखता है देख सका कब मैं ग़ैर को वा हो सकी न चश्म-ए-तमाशा तिरे बग़ैर ऐ बर्क़-ए-हुस्न दिल की फ़ज़ा पर भी इक झलक तारीक है ये तूर-ए-तजल्ली तिरे बग़ैर ज़र्रा भी अपने दश्त से बेगाना हो गया बाहम जुदा हैं क़तरा-ओ-दरिया तिरे बग़ैर जब तू नहीं नज़र में तो नज़रों को क्या करूँ किस काम का ये दीदा-ए-बीना तिरे बग़ैर गर आज तेरी क़द्र नहीं ऐ 'जुनूँ' न हो रोएगा अपने हाल पे फ़र्दा तिरे बग़ैर